हिन्दी साहित्य का एक अध्याय : महादेवी वर्मा
हिन्दी साहित्य को अधिक से अधिक गहरा और हरा-भरा बनाने में भारत के साहित्यकारों का अहम योगदान रहा है. तुलसीदास हों या रविदास सबने हिन्दी के माध्यम से ही जनता को भक्ति के रंग में रंगा है. हिन्दी भाषा में मिलकर भक्ति का रंग भी कुछ ज्यादा निखर जाता है. हिन्दी साहित्य के साहित्यकारों की श्रेणी में एक नाम ऐसा भी है जिसे हम नए युग की मीरा के नाम से जानते हैं और वह हैं महादेवी वर्मा. वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं. कभी कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहकर संबोधित किया था जो उनकी महानता दर्शाता है.
महादेवी वर्मा का जीवन
महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं. महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे.
महादेवी वर्मा की शादी
महादेवी वर्मा ने जिस परिवार में जन्म लिया था उसमें कई पीढ़ियों से किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था इसलिए परिवार में महादेवी की हर बात को माना जाता था. महादेवी का विवाह अल्पायु में ही कर दिया गया, पर वह विवाह के इस बंधन को जीवनभर स्वीकार न कर सकीं.
नौ वर्ष की यह अबोध बालिका जब ससुराल पहुंची और श्वसुर ने उसकी पढ़ाई पर बंदिश लगा दी तो उनके मन ने ससुराल और विवाह को त्याग दिया. विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके श्वसुर का देहांत हो गया और तब उन्होंने पुन: शिक्षा प्राप्त की, पर दोबारा ससुराल नहीं गईं. उन्होंने अपने गद्य-लेखन द्वारा बालिकाओं, विवाहिताओं और बच्चों के प्रति समाज में हो रहे अन्याय के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाकर उन्हें न्याय दिए जाने की मांग की.
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